Astha Singhal

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जीवन का सत्य #प्रेरक

कहानी - जीवन का सत्य 


जॉनर- प्रेरक


हरि चरण शहर में मूर्ति बनाने का कार्य करता था। बहुत ही खूबसूरत और सुंदर मूर्तियां बनाता था। उसके हाथों में मूर्ति बनाने का ऐसा हुनर था कि वह कुछ ही समय में बहुत सुंदर मूर्ति बना सकता था। पर उसको उसकी मूर्ति के इतने अच्छे दाम नहीं मिलते थे। बस गुज़र बसर चल जाती थी।

आज काफी समय बाद वो अपने गांव जा रहा था। अपने बूढ़े माता पिता से मिलने। गांव के रास्ते में एक छोटा सा जंगल पड़ता था। वह उस जंगल के रास्ते जा रहा था। 

थोड़ा सुस्ताने के लिए वो एक पत्थर पर बैठ गया। अपने झोले से सब्ज़ी- रोटी निकाली और खाने लगा। तभी उसकी नज़र उस पत्थर पर पड़ी जिसपर वो बैठा था। उसे देखते ही वह बोला,"वाह! कितना बढ़िया पत्थर है। इससे कितनी सुन्दर मूर्ति बन सकती है। वैसे भी इतने समय बाद गांव जा रहा हूं। माता- पिता के लिए एक मूर्ति ही बना कर ले जाता हूं।" 

यह सोच उसने अपने औजार निकाले और जैसे ही उसने पत्थर पर पहली चोट मारी, उस पत्थर में से आवाज़ आई,"मुझे मत मारो, मुझे मत मारो। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?" 

"अरे! पत्थर भाई, मैं आपको एक सुंदर सी मूर्ति का रूप देना चाहता हूं।" हरि चरण ने कहा। 

"नहीं भाई, मैं ऐसे ही ठीक हूं। तुम कृपया किसी और पत्थर को चुन लो।" वह पत्थर गिड़गिड़ाने लगा।

हरि चरण दूसरे पत्थर की खोज करने लगा। तभी वो पत्थर बोला,"वो देखो, वहां कोने में एक पत्थर पड़ा है। तुम उससे मूर्ति बना लो।"

हरि चरण ने जाकर उस पत्थर को उठाया और अपने औजारों से उसे तराशने लगा। पहला पत्थर बहुत खुश था, क्योंकि उसे उस दर्द से नहीं गुजरना पड़ रहा था। 

लगभग दो घंटे बाद हरि चरण ने उस पत्थर को तराश कर एक खूबसूरत गणपति बप्पा की मूर्ति तैयार कर दी। मूर्ति इतनी जीवंत लग रही थी कि ऐसा लग रहा था कि अभी बोल उठेगी। हरि चरण खुश हो गया। पर अब मुसीबत यह थी कि मूर्ति को उठाकर कैसे लेकर जाए। तो उसने सोचा कि गांव जाकर अपने दोस्त की बैलगाड़ी लाएगा और फिर ले जाएगा। ये सब सोच वो गांव की तरफ निकल गया। 

गांव पहुंच कर देखा कि सब गांव के लोग एक भव्य मंदिर के आगे इकठ्ठे हो रखे थे। सरपंच बहुत परेशान दिखाई दे रहे थे। 

हरि चरण ने एक गाँववासी से पूछा," नया मंदिर बन गया का भाई?" 

हरिचरण को देख सब गाँववासी उछल पड़े। 

"अरे! सरपंच जी हरिया आ गयो! अब कुछ हो सको, तुम चिंता ना करो।" 

सरपंच हरि चरण को देख थोड़ा आश्वस्त हुए पर फिर उदास हो बोले,"अरे! इतनी जल्दी हरिया कैसो बना पाएगा मूर्ति? मंत्रीजी के आने का समय हो गयो है।" 

"कैसी मूर्ति? क्या बात है? कोई तो बताओ?" हरि चरण हैरान हो पूछने लगा।

"अरे! हरि भाई, आज इस मंदिर का उद्घाटन है। मंत्रीजी कभी भी आते होंगे। पर जिस मूर्तिकार को गणेश जी की मूर्ति बनाने को कही थी, वो अभी तक पहुंचा ही नहीं। अब तुम इतनी जल्दी कैसे मूर्ति….?" एक गाँव वासी ने कहा। 

"घबराने की कोई बात ना है सरपंच जी। जे समझो कि चमत्कार ही था भगवान का। आज जंगल से आते समय एक पत्थर को तराश कर गणेश जी की ही मूर्ति बना कर आया हूं। थोड़ी बड़ी थी तो उठ ना रही थी। अभी बैलगाड़ी भेज कर उठवा लाओ।" हरि चरण ने कहा।

हरि चरण की बात सुनकर सब खुशी से झूम उठे और उसे गले से लगा लिया। कुछ लोग बैलगाड़ी लेकर उसकी बताई दिशा में तुरंत निकल पड़े। 

कुछ समय पश्चात गाँव के लड़के मूर्ति लेकर वापस आए। सब लोग मूर्ति देख चकित रह गए। इतनी सुन्दर और अलौकिकता से परिपूर्ण मूर्ति उन्होंने आज तक नहीं देखी थी। सरपंच जी ने खुश हो हरि चरण को गले से लगा लिया। और इनाम में पांच हज़ार रुपए दिए। 

तभी मंत्री जी भी आ गये। वह भी उस मूर्ति को देख हरि चरण को शाबाशी दिए बिना नहीं रह सके। उन्होंने भी हरि चरण को पांच हज़ार इनाम स्वरूप दिए। हरि चरण मन ही मन भगवान का धन्यवाद करने लगा। उसकी मेहनत सफल हुई थी। मूर्ति की स्थापना आरंभ हुई। पंडितजी गणेश जी को उनके स्थान पर विराजमान करते हुए बोले,"एक पत्थर और लाओ। नारियल फोड़ना है।" 

गाँव के लड़के भाग कर बैलगाड़ी से एक बड़ा सा पत्थर उठा लाए और उसे मूर्ति के नीचे रख दिया। ये वही पत्थर था जिसको तराश कर हरि चरण गणपति बप्पा की मूर्ति बनाना चाहता था। पर उस पत्थर ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि वह दर्द नहीं सहना चाहता था।

सब लोग एक - एक कर उस पत्थर पर नारियल फोड़ रहे थे और वो दर्द से कराह रहा था। यह देख मूर्ति का रूप धारण किया हुआ पत्थर बोला,"अब क्यों रो रहे हो?" 

"तुम्हें क्या? तुम्हारी तो सब पूजा और जयकारे कर रहे हैं। और मुझ पर नारियल फोड़ रहे हैं।" उस पत्थर ने कहा। 

"ये सौभाग्य तुम्हें प्राप्त हो सकता था यदि तुम उस वक्त ज़रा सा दर्द सहन कर लेते। पर तुमने ऐसा नहीं किया। तो अब भुगतो। यहीं सारी ज़िन्दगी मेरे चरणों में रहोगे और सब तुमपर नारियल फोड़ मुझे पूजेंगे।" मूर्ति बने पत्थर ने कहा। 

वह पत्थर अपनी किस्मत को कोसता रहा और आजीवन यूं ही रोता रहा। 

जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने के लिए कुछ तकलीफों और कष्टों को सहना पड़ता है। आग में तपकर ही सोना निखरता है। जो व्यक्ति अपने आप को कष्ट नहीं देना चाहता वो जीवन में उस पत्थर के समान ही ठोकरें खाते रहता है। हरि चरण ने भी तपती धूप में अपने आप को कष्ट देकर उस भव्य मूर्ति का निर्माण किया जिसकी वजह से उसे इनाम और सराहना प्राप्त हुई। जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कष्टों का सामना करता है वो उस पत्थर के समान बन जाता है जिसे तराश कर मूर्ति बना दिया गया। और वो पूजनीय बन गया। यहीं जीवन का सत्य है। 

🙏
आस्था सिंघल

# शॉर्ट स्टोरी चैलेंज

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10 Comments

Shnaya

02-Jun-2022 04:54 PM

👏👌

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Seema Priyadarshini sahay

29-Apr-2022 09:12 PM

अत्यंत खूबसूरत

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Sandhya Prakash

19-Apr-2022 12:20 PM

Bahut khoob

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